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पत्रकारिता कभी निष्पक्षता और निर्भीकता का प्रतीक थी, लेकिन आज यह तीन श्रेणियों में बंट चुकी है

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सत्य को सामने लाने के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार रहता निष्पक्षता पत्रकार

*पत्रकारिता के तीन चेहरे : मजबूत, मजबूर और मजदूर पत्रकार ; क्या मीडिया आज भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बना हुआ है, या यह अब दबाव, मजबूरी और शोषण का शिकार हो चुका ?…*

संवाददाता संतोष कुमार यदु

रायपुर : पत्रकारिता कभी निष्पक्षता और निर्भीकता का प्रतीक थी, लेकिन आज यह तीन श्रेणियों में बंट चुकी है—मजबूत पत्रकार, मजबूर पत्रकार और मजदूर पत्रकार। इनमें से कोई सच्चाई के लिए लड़ता है, कोई समझौते करने को मजबूर है, और कोई शोषण की चक्की में पिस रहा है।

*मजबूत पत्रकार : सच का योद्धा -* मजबूत पत्रकार किसी दबाव, लालच या धमकी के आगे नहीं झुकता।
* सत्य को सामने लाने के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार रहता है।
* सत्ता, कॉरपोरेट और प्रशासनिक दबाव इसके इरादों को कमजोर नहीं कर सकते।
* इसे झूठे मुकदमों, धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ता है, लेकिन इसकी ईमानदारी अडिग रहती है।

*मजबूर पत्रकार : सत्ता और कॉरपोरेट के बंधन में -* मजबूर पत्रकार वह है, जो सच्चाई जानता तो है, लेकिन उसे पूरी तरह दिखाने की हिम्मत नहीं कर पाता।
* मीडिया संस्थानों की नीति और मालिकों के हित इसके हाथ बांध देते हैं।
* विज्ञापनदाताओं और राजनीतिक दबावों के कारण इसे वही लिखना पड़ता है, जो सिस्टम चाहता है।
* सच को सेंसर किया जाता है, हकीकत से ध्यान भटकाने के लिए फर्जी मुद्दे गढ़े जाते हैं।

*मजदूर पत्रकार : मेहनतकश लेकिन शोषित -* मजदूर पत्रकार वह है, जो पत्रकारिता के मूल आधार पर काम करता है, लेकिन सबसे अधिक शोषण का शिकार होता है।
* छोटे अखबारों, डिजिटल प्लेटफॉर्म और फ्रीलांस मीडिया में कम वेतन या बिना वेतन के काम करता है।
* इसकी रिपोर्टिंग का श्रेय बड़े संपादकों और एंकरों को मिल जाता है।
* इसे किसी कानूनी संरक्षण, सामाजिक सुरक्षा या आर्थिक स्थिरता की गारंटी नहीं मिलती।

*पत्रकारिता को बचाने की चुनौती :* मीडिया के मौजूदा हालात इस बात का संकेत हैं कि पत्रकारिता एक गहरे संकट में है। अगर इसे बचाना है, तो सिर्फ चिंता करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे।

* निष्पक्ष पत्रकारिता का समर्थन : जनता को सिर्फ वही खबरें नहीं देखनी चाहिए जो मुख्यधारा मीडिया पर परोसी जाती हैं, बल्कि सच के लिए लड़ने वाले पत्रकारों को पढ़ना और सुनना होगा। यह समर्थन आर्थिक और नैतिक, दोनों रूपों में जरूरी है।
* मीडिया की जवाबदेही तय हो : खबरों का चुनाव कैसे होता है? कौन-सी खबरें दबाई जाती हैं और क्यों? यह जनता के लिए स्पष्ट होना चाहिए। मीडिया हाउसों को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना होगा।
* मजदूर पत्रकारों को अधिकार और सुरक्षा मिले : पत्रकारिता के असली सिपाही वे हैं, जो जमीन से रिपोर्टिंग करते हैं। इन्हें उचित वेतन, संविदा सुरक्षा और कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए, ताकि वे निडर होकर काम कर सकें।
* मजबूर पत्रकारों को मजबूत बनने का अवसर : जो पत्रकार परिस्थितियों के कारण मजबूर हैं, उन्हें मजबूत बनाने के लिए एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और साहसिक मीडिया इकोसिस्टम तैयार करना होगा।

*अगर यह नहीं हुआ, तो पत्रकारिता सिर्फ सत्ता की चाटुकारिता का औजार बनकर रह जाएगी। फैसला जनता के हाथ में है – क्या हम निष्पक्ष पत्रकारिता को मरने देंगे, या इसे बचाने के लिए खड़े होंगे?…*

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🌿 पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे 🌏

(विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2025 पर विशेष संपादकीय)

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिन महज एक औपचारिकता नहीं, बल्कि चेतावनी है — हमारी धरती, हमारी प्रकृति अब और ज्यादा बोझ नहीं सह सकती। इस वर्ष की थीम है “प्लास्टिक प्रदूषण पर विजय – एक साथ मिलकर समाधान”, जो हमें उस संकट की याद दिलाती है जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी प्लास्टिक से जुड़ा है।

छत्तीसगढ़ जैसे हरित राज्य में जहां वनों की भरमार है, आदिवासी परंपराएं प्रकृति से जुड़ी हैं और नदियां जीवनदायिनी बनकर बहती हैं, वहां भी हम देख रहे हैं कि नदियां सिकुड़ रही हैं, जंगल उजड़ रहे हैं और हवा जहरीली होती जा रही है। विकास की दौड़ में हमने पर्यावरण की कीमत चुकाई है — और अब वह मूल्य बहुत महंगा हो चला है।

पर्यावरण की दुर्दशा के मुख्य कारण:

  • पेड़ों का अंधाधुंध कटाव
  • अवैध खनन और औद्योगिक प्रदूषण
  • प्लास्टिक और पॉलीथीन का अत्यधिक प्रयोग
  • जल स्रोतों का दोहन और शहरीकरण

“खोज खबर छत्तीसगढ़” के माध्यम से हम सभी पाठकों से अपील करते हैं:

  • कम से कम एक पौधा लगाएं और उसकी देखभाल करें।
  • प्लास्टिक की थैलियों की जगह कपड़े या जूट के थैले अपनाएं।
  • घरों में वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें।
  • स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण और सफाई अभियानों में भाग लें।

पर्यावरण बचाना कोई एक दिन का काम नहीं, यह रोज़ की आदत बननी चाहिए।

“अगर आज नहीं जागे, तो कल के पास कोई हरियाली नहीं होगी।”

– संपादकीय टीम, खोज खबर छत्तीसगढ़
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