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फाइलेरिया व कृमि बीमारी के कौन-कौन से लक्षण हैं इनसे होने वाली बीमारी व उनसे बचाव के बारे में जानकारी दिया गया

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फाइलेरिया व कृमि बीमारी के कौन-कौन से लक्षण हैं इनसे होने वाली बीमारी व उनसे बचाव के बारे में जानकारी दिया गया

संवाददाता संतोष कुमार यदु

तिल्दा नेवरा ररूहा राम वर्मा शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला नेवरा क्रमांक 1 में फाइलेरिया व कृमि मुक्ति उन्मूलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया । जिसमें मुख्य रूप से राम पंजवानी, नरेंद्र शर्मा , ईश्वर यदु पार्षद ,मनोज निषाद मंडल अध्यक्ष भाजपा ,विनोद नेताम पार्षद, रानी सौरभ जैन पार्षद, अमरजीत पासवान, कुसुम निषाद प्रभा यादव तीजन नौरंगे विकासखंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) डॉक्टर पैकरा मैम डॉक्टर ममता सोनानी संकुल प्राचार्य डॉक्टर राजेश चंदानी व वरिष्ठ व्याख्याता जितेंद्र जेहोआश के उपस्थिति में मनाया गया डॉक्टर पैकरा मैम व सुनानी मैम के द्वारा फाइलेरिया व कृमि बीमारी के कौन-कौन से लक्षण हैं इनसे होने वाली बीमारी व उनसे बचाव के बारे में जानकारी दी साथ ही यह कार्यक्रम पूरे छत्तीसगढ़ में एक सप्ताह तक चलेगा मितानिन दीदियों के द्वारा विशेष कैंप लगाकर फाइलेरिया की दवा खिलाई जाएगी अत: समस्त नागरिक विशेष कैप में जाकर अवश्य फाइलेरिया की दवाई खाये और फाइलेरिया जैसे बीमारी से बचे। इसी प्रकार रानी सौरभ जैन के द्वारा अपील की गई की फाइलेरिया की टेबलेट लेने से हाथी पांव जैसे बड़े बीमारियों से बचा जा सकता है कार्यक्रम के अंत में नवनियुक्त पार्षदों को पौधा लगा गमला देकर सम्मानित किया गया कार्यक्रम का संचालन प्रधान पाठक विनोद वर्मा द्वारा एवं कार्यक्रम को सफल बनाने में संगीता रानी जेहोआश, लक्ष्मी देवी वर्मा ,अनिल निर्मलकर ,सविता वर्मा, कामिनी देवांगन व संध्या वर्मा का विशेष योगदान रहा।

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🌿 पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे 🌏

(विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2025 पर विशेष संपादकीय)

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिन महज एक औपचारिकता नहीं, बल्कि चेतावनी है — हमारी धरती, हमारी प्रकृति अब और ज्यादा बोझ नहीं सह सकती। इस वर्ष की थीम है “प्लास्टिक प्रदूषण पर विजय – एक साथ मिलकर समाधान”, जो हमें उस संकट की याद दिलाती है जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी प्लास्टिक से जुड़ा है।

छत्तीसगढ़ जैसे हरित राज्य में जहां वनों की भरमार है, आदिवासी परंपराएं प्रकृति से जुड़ी हैं और नदियां जीवनदायिनी बनकर बहती हैं, वहां भी हम देख रहे हैं कि नदियां सिकुड़ रही हैं, जंगल उजड़ रहे हैं और हवा जहरीली होती जा रही है। विकास की दौड़ में हमने पर्यावरण की कीमत चुकाई है — और अब वह मूल्य बहुत महंगा हो चला है।

पर्यावरण की दुर्दशा के मुख्य कारण:

  • पेड़ों का अंधाधुंध कटाव
  • अवैध खनन और औद्योगिक प्रदूषण
  • प्लास्टिक और पॉलीथीन का अत्यधिक प्रयोग
  • जल स्रोतों का दोहन और शहरीकरण

“खोज खबर छत्तीसगढ़” के माध्यम से हम सभी पाठकों से अपील करते हैं:

  • कम से कम एक पौधा लगाएं और उसकी देखभाल करें।
  • प्लास्टिक की थैलियों की जगह कपड़े या जूट के थैले अपनाएं।
  • घरों में वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें।
  • स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण और सफाई अभियानों में भाग लें।

पर्यावरण बचाना कोई एक दिन का काम नहीं, यह रोज़ की आदत बननी चाहिए।

“अगर आज नहीं जागे, तो कल के पास कोई हरियाली नहीं होगी।”

– संपादकीय टीम, खोज खबर छत्तीसगढ़
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