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राजधानी में प्रशासन का दोहरा चेहरा: मजदूरों की मौत पर भी कार्रवाई में भेदभाव…*

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*राजधानी में प्रशासन का दोहरा चेहरा: मजदूरों की मौत पर भी कार्रवाई में भेदभाव…*

 

संवाददाता संतोष कुमार यदु

राजधानी रायपुर में निर्माणाधीन अविनाश एलीगेंस प्रोजेक्ट में हुए हादसे ने प्रशासन की कार्यशैली और बिल्डरों पर सरकार की मेहरबानी को उजागर कर दिया है। 11 जनवरी 2025 को सातवीं मंजिल की छत गिरने से दो मजदूरों की मौत हो गई और छह गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बावजूद, इस बड़े हादसे में अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। पुलिस ने केवल मैनेजर और ठेकेदार के खिलाफ मामूली एफआईआर दर्ज की है, जबकि अविनाश बिल्डर के निदेशकों को जांच के दायरे से बाहर रखा गया है।

सूत्रों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट को 30 मार्च 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके चलते दिन-रात निर्माण कार्य करवाया जा रहा है। मजदूरों से ज्यादा काम लेने और निर्माण सामग्री की गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। इस जल्दबाजी का नतीजा मजदूरों की जान पर भारी पड़ा।

*अशोका बिरयानी मामला: तत्परता से कार्रवाई :*

इसके विपरीत, तेलीबांधा स्थित अशोका बिरयानी सेंटर में दो कर्मचारियों की मौत के मामले में प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की थी। इस घटना में मालिक, सीईओ, मैनेजर समेत छह लोगों पर गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। कलेक्टर और एसएसपी खुद मौके पर पहुंचे थे, और मृतक परिवारों को 15-15 लाख रुपये मुआवजा तथा आजीवन 15-15 हजार रुपये भत्ता दिलवाने की व्यवस्था करवाई गई।

*अविनाश बिल्डर पर मेहरबानी क्यों?*

दोनों मामलों की तुलना से प्रशासन और पुलिस का दोहरा रवैया साफ नजर आता है। अशोका बिरयानी में त्वरित कार्रवाई और अविनाश एलीगेंस के मामले में उदासीनता कई सवाल खड़े करती है।

*1. बिल्डर को बचाने की कोशिश?”*

अविनाश बिल्डर के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न होना प्रशासन और पुलिस की नीयत पर सवाल खड़े करता है।

*2. राजनीतिक दबाव?*

सत्ता पक्ष के प्रभावशाली नेताओं के हस्तक्षेप से पुलिस कार्रवाई ठंडी पड़ी नजर आती है।

*प्रशासन की चुप्पी पर सवाल :*

अविनाश एलीगेंस के मामले में न तो स्थानीय विधायक ने कोई प्रतिक्रिया दी है, न ही किसी मंत्री ने। प्रशासन और पुलिस की चुप्पी मजदूरों की जान की कीमत पर सवाल खड़ा करती है।

*क्या यही सुशासन है?*

छत्तीसगढ़ में सुशासन का दावा करने वाली सरकार के लिए यह घटना शर्मनाक है।

1. मजदूरों की जान की कीमत कब समझेगा प्रशासन?

2. क्या प्रभावशाली बिल्डरों को कानून से ऊपर माना जाएगा?

*न्याय और कार्रवाई की मांग :*

1) बिल्डर के निदेशकों को जांच के दायरे में लाया जाए।

2) मजदूरों की मौत पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष जांच समिति का गठन हो।

3) निर्माण कार्य में सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएं।

दोनों मामलों ने राजधानी में प्रशासन की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर दिया है। मजदूरों की जान की कीमत समझना और न्याय सुनिश्चित करना अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

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