अमावस्या पूजा पति के दीर्घायु होने के लिए यह पूजा का विशेष महत्व

खोज खबर छत्तीसगढ़ ब्यूरो चीफ हरि देवांगन
जिला उप मुख्यालय चांपा,,,, विशेषकर भारतीय महिलाओं के लिए हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार जितने भी पूजा आराधना का दिन तिथि निर्धारित बना हुआ है उन सब में प्रथम स्थान रखने वाला बट सावित्री पूजा का अपना एक विशेष महत्व है, जिसमें सुहागिन महिलाएं अपने पति एवं सिंदूर के लंबी आयु के लिए यह पूजा आराधना पूरा विधि विधान से आज किया जा रहा है,बट वृक्ष सहित मां पार्वती के पूजा से मान्यता रहा है कि इस पूजा को विधि विधान से करने के बाद उनके सिंदूर का आयु न सिर्फ लंबी होगी बल्कि आजीवन सुहागन का वरदान प्राप्त हो जाता है, इसीलिए वर्ष में कई पूजा पाठ एवं आराधना में इस वट सावित्री व्रत को सर्वोपरि स्थान प्रदान किया गया है, बताते चलें कि यह व्रत प्रत्येक वर्ष सोमवती अमावस्या के दिन मनाया जाता है,और आज वह पवित्र पावन दिवस है,जब सुहागन ने इस पूजा को करके अपने पति के लंबी आयु के लिए जगदंबा मां पार्वती एवं बट सावित्री से दया कृपा और अपनी आंचल के छत्रछाया बनाए रखने के लिए उपवास रखते हुए पूरा विधान के साथ पूजा किया जाता है,इस पूजा के पीछे पुरातन काल से ही एक नहीं कई कहावतें तथा कहानियां हमारे बड़े बुजुर्गों के द्वारा कही और सुनी जाती रही है, जिसमें सर्वमान्य के रूप में बताया जाता है कि मृत्यु के देवता यमराज के द्वारा सत्यवान का प्राण हरण कर लिया जाता है जिसे लेकर सावित्री ने घोर शपथ लेते हुए अंततः प्राण हरण कर लिऐ जाते हुई यमराज के पीछे सरपट दौड़ लगाना प्रारंभ कर देती है,जिसे यमराज देखकर भयभीत होकर तीव्र गति से यमलोक की तरफ बढ़ते चले जाते हैं,लेकिन सावित्री भी कहां थमने वाली थी अपने पति का प्राण वापस लाने के लिए यमलोक की तरफ बहुत तीव्र गति से सफर करने लगती है, जिसे लेकर यमराज परेशान हो जाते हैं, लेकिन यमराज और सावित्री का यह यात्रा यहीं पर खत्म नहीं होता बल्कि दोनों अपने-अपने दिशा में तीव्र गति से बढ़ते चले जाते हैं,क्योंकि इसके पहले आज पर्यंत ऐसा कभी नहीं हुआ था पति व्रत धर्म का पालन करने वाली सावित्री के लगन व संकल्प एवं प्राण वापस लेकर ही दम लेने के व्रत को देखकर यमराज अंततः लोकवान का जीवन को वापस कर सावित्री को सदा सुहागन बने रहने का वरदान भी दिया जाता है,इसी तथ्य के आधार पर इस व्रत पूजा आराधना को सुहागिन महिलाएं आज भी पूरे विधि विधान के साथ करते हुए अपने पतिव्रत धर्म का पालन किया जाता है,माना जाता है कि अन्य वृक्षों के अपेक्षा वटवृक्ष का उम्र 200 वर्ष से भी अधिक माना गया है और बट सावित्री पूजा में इस बात पर भी विशेष महत्व सहित बल दिया जाता है, इसीलिए सुहागिन महिलाएं बट वृक्ष की पूजा करते हुए रोली धागा को नियम पूर्वक वृक्ष का फेरी लगाते हुए पवित्र धागा लपेटकर परिवार के सुख समृद्धि सहित पति के लंबी आयु के लिए विभिन्न खाद्य सामग्रियों को प्रसाद के रूप में अर्पित कर आशीर्वाद लेने का परंपरा का पालन किया जाता है,,,।
( छत्तीसगढ़ में इस पूजा को बरसाईत पूजा के रूप में मान्यता दिया जाता है और माना जाता है कि वर्षा ऋतु के आगमन में अब ज्यादा समय नहीं है )
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