Breaking News

सवाल उठना लाजिमी है — मानसून की दस्तक और गरीबों के आशियाने पर राजस्व विभाग का परंपरागत प्रहार!

Khojkhbarchhattisgarh.com

क्या यह अव्यवहारिक और अलोकतांत्रिक कार्यशैली नहीं?

रिपोर्ट: खोज खबर छत्तीसगढ़ ब्यूरो चीफ — हरि देवांगन, चांपा

जांजगीर-चांपा।
प्रदेश में मानसून की आमद होते ही एक बार फिर प्रशासन की ‘कब्जा हटाओ’ मुहिम ने रफ्तार पकड़ ली है। बाढ़ और बारिश के संकट से पहले जहां आम जनता अपने छत और रोजगार बचाने की चिंता में डूबी है, वहीं तहसील और राजस्व अधिकारियों की सक्रियता गरीब तबके के लोगों के लिए एक बार फिर संकट बनकर टूट पड़ी है। सवाल उठना लाजिमी है — आखिर हर साल मानसून के साथ ही यह ‘तत्परता’ क्यों दिखाई देती है?

प्रशासन के इस रवैये से न केवल प्रभावित परिवार, बल्कि आम जनमानस भी पूछना चाहता है कि आखिरकार ऐसी कार्रवाई के लिए वर्षा ऋतु को ही क्यों चुना जाता है? क्या यह विभागीय असंवेदनशीलता का प्रतीक नहीं?

गौरतलब है कि हम संवाददाता या मीडिया कभी भी अवैध कब्जों का समर्थन नहीं करते। लेकिन सवाल इस बात का है कि जब कार्यवाही करनी ही है, तो उसे ऐसे समय पर क्यों अंजाम दिया जाता है जब गरीब, मजदूर, छोटे दुकानदार पहले से ही मौसम की मार से जूझ रहे होते हैं?

कुरदा में चला बुलडोजर, अब निशाने पर सब्ज़ी विक्रेता!

हाल ही में चांपा उप-मुख्यालय के समीप ग्राम कुरदा में प्रशासन ने युद्ध स्तर पर कब्जा हटाने की कार्यवाही की। अब खबर है कि नगर के प्रवेश द्वार, गेमन पुल के पास भी सब्जी विक्रेताओं और छोटे व्यापारियों को नोटिस थमाए गए हैं और विभागीय अमला कब्जा हटाने की तैयारी में जुटा है।



सवालों के घेरे में प्रशासन की कार्यशैली:

मानसून में ही क्यों? क्या प्रशासन को पूरे साल अवैध कब्जों की जानकारी नहीं होती? फिर आखिर मानसून आते ही इस ‘एक्टिव मोड’ में आना कहां तक जायज है?

कार्यवाही में देरी क्यों? जब कोई अवैध कब्जा प्रारंभ होता है, तब निगरानी और त्वरित कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?

गरीबों पर ही क्यों? क्या बेजा कब्जा केवल झोपड़ी में रहने वाले या फुटपाथ पर व्यापार करने वाले ही करते हैं?


अलोकतांत्रिक और असंवेदनशील रवैया?

जब प्रशासन खुद ही अवैध कब्जों को विकसित होने देता है, और फिर उन्हें ध्वस्त करने के लिए गरीबों के आशियानों पर बुलडोजर चला देता है — वह भी बारिश के बीच, तो यह प्रशासनिक निष्क्रियता की सजा आम जनता को भुगतनी पड़ती है।

क्या जनप्रतिनिधि और प्रशासन यह भूल जाते हैं कि हर नागरिक को जीने और कमाने का संवैधानिक अधिकार है? यदि कब्जा अवैध है तो कार्यवाही हो — लेकिन संवेदनशीलता और समय की समझ के साथ।

खोज खबर छत्तीसगढ़ का यह स्पष्ट मानना है कि बेजा कब्जों पर कार्रवाई आवश्यक है, लेकिन उसकी समयावधि, कार्यप्रणाली और मानवीय दृष्टिकोण पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। प्रशासन की यह परंपरा — “बरसात के पहले गरीबों पर चढ़ाई” — अब बदलनी चाहिए।

About Santosh Kumar

Check Also

जनता को धकेला पाषाण युग में, जनप्रतिनिधि बने मौनी बाबा

Khojkhbarchhattisgarh.com नैला–बलौदा मार्ग की बदहाल सड़कों से भड़का जनाक्रोश, 20 सितंबर के बाद कभी भी …