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- संपादकीय विशेष: पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे
🌿 पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे 🌏
(विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2025 पर विशेष संपादकीय)
हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिन महज एक औपचारिकता नहीं, बल्कि चेतावनी है — हमारी धरती, हमारी प्रकृति अब और ज्यादा बोझ नहीं सह सकती। इस वर्ष की थीम है “प्लास्टिक प्रदूषण पर विजय – एक साथ मिलकर समाधान”, जो हमें उस संकट की याद दिलाती है जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी प्लास्टिक से जुड़ा है।
छत्तीसगढ़ जैसे हरित राज्य में जहां वनों की भरमार है, आदिवासी परंपराएं प्रकृति से जुड़ी हैं और नदियां जीवनदायिनी बनकर बहती हैं, वहां भी हम देख रहे हैं कि नदियां सिकुड़ रही हैं, जंगल उजड़ रहे हैं और हवा जहरीली होती जा रही है। विकास की दौड़ में हमने पर्यावरण की कीमत चुकाई है — और अब वह मूल्य बहुत महंगा हो चला है।
पर्यावरण की दुर्दशा के मुख्य कारण:
- पेड़ों का अंधाधुंध कटाव
- अवैध खनन और औद्योगिक प्रदूषण
- प्लास्टिक और पॉलीथीन का अत्यधिक प्रयोग
- जल स्रोतों का दोहन और शहरीकरण
“खोज खबर छत्तीसगढ़” के माध्यम से हम सभी पाठकों से अपील करते हैं:
- कम से कम एक पौधा लगाएं और उसकी देखभाल करें।
- प्लास्टिक की थैलियों की जगह कपड़े या जूट के थैले अपनाएं।
- घरों में वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें।
- स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण और सफाई अभियानों में भाग लें।
पर्यावरण बचाना कोई एक दिन का काम नहीं, यह रोज़ की आदत बननी चाहिए।
“अगर आज नहीं जागे, तो कल के पास कोई हरियाली नहीं होगी।”
– संपादकीय टीम, खोज खबर छत्तीसगढ़
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रायगढ़।* जिले के धरमजयगढ़ वनमंडल अंतर्गत आमगांव क्षेत्र से एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। एक जंगली हाथी ने स्थानीय ग्रामीण भगत राम राठिया (आयु 40 वर्ष, निवासी वैसी गांव) को बेरहमी से कुचलकर मार डाला। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह हाथी कई दिनों से अपने झुंड से बिछड़कर इलाके में अकेले भटक रहा था।
घटना धरमजयगढ़ रेंज के 372 आरएफ जंगल क्षेत्र की है। हाथी द्वारा बार-बार पटकने के कारण मृतक के शरीर पर गंभीर चोटों के निशान पाए गए हैं। सूचना मिलते ही ग्रामीणों और वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर जांच शुरू कर दी है।
*लेकिन सवाल वही है – क्या यह सिर्फ एक हादसा है या विनाशकारी विकास मॉडल की एक और बलि?…*
धरमजयगढ़ और रायगढ़ का वन क्षेत्र आज जिस संकट से गुजर रहा है, वह केवल प्राकृतिक नहीं, नीतिगत और प्रशासनिक विफलता का परिणाम है। खनन और उद्योगों के विस्तार के लिए जंगलों को काटा गया, हाथियों के प्राकृतिक गलियारे तहस-नहस कर दिए गए, और अब हाथी गांवों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।
*परिणाम? :*
* वन्यजीव और मानव के बीच सीधा संघर्ष
* आदिवासी ग्रामीणों की लगातार मौतें
* और सरकार की चुप्पी
*आंकड़ों की जुबानी त्रासदी :*
* 2024-25 में धरमजयगढ़ क्षेत्र में 11 से भी अधिक लोगों की जान हाथियों के हमले में गई
* रायगढ़ जिले की 38% से अधिक वनभूमि खनन और उद्योगों को सौंप दी गई
* DBL जैसी कंपनियों द्वारा लगातार जंगलों के बीच खनन कार्य चल रहे हैं
*प्रशासन के पास कागज हैं, पर समाधान नहीं :* हर घटना के बाद मुआवजे की औपचारिकता होती है। वन विभाग बयान देता है। लेकिन क्या कभी किसी मंत्री, किसी नीति निर्माता ने यह पूछा – “हाथी जंगल से क्यों भटक रहे हैं?”
*अब सीधा सवाल – पर्यावरण मंत्री जी, क्या आप सुन रहे हैं? :* धरमजयगढ़ जल रहा है, जंगल उजड़ रहा है, आदिवासी मर रहे हैं और आपका मंत्रालय खामोश है। क्या यही पर्यावरण संरक्षण है?
*मंत्री महोदय, कृपया बताइए :*
* क्या DBL जैसी कंपनियों की परियोजनाओं का पर्यावरणीय मूल्यांकन हुआ था?
* क्या विस्थापित वन्यजीवों के लिए पुनर्वास नीति तैयार की गई है?
* और सबसे अहम – कब तक हाथियों के कोप का शिकार बनते रहेंगे ग्रामीण?
*पर्यावरण मंत्री जी, अब कुछ कीजिए – वरना इतिहास गवाह रहेगा कि जब जंगल चीख रहे थे, आप चुप थे।*